Sunday, July 14, 2013

अब तू जाग

अरे छोड़ दे बीते कल की बोरी
काट दे रस्सी सूतली डोरी
तुझसे पूछेगी यह मट्टी
करके साँस साँस को भठ्ठी
अब तू जाग

उतार के फेंक दे सब जंजाल
बीते कल का हर कंकाल
तेरे तलवे है तेरी नाल
तुझे तो करना है हर हाल
अब तू जाग

तेरा तो बिस्तर है मैदान
ओढना धरती तेरी शान
तेरे सिरहाने है चट्टान
पहन ले पूरा आसमान

फूंक दे खुद को ज्वाला ज्वाला
बिन खुद जले ना होय उजाला


-प्रसून जोशी 

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