अरे छोड़ दे बीते
कल की बोरी
काट दे रस्सी सूतली डोरी
तुझसे पूछेगी यह
मट्टी
करके साँस साँस
को भठ्ठी
अब तू जाग
उतार के फेंक दे
सब जंजाल
बीते कल का हर
कंकाल
तेरे तलवे है
तेरी नाल
तुझे तो करना है
हर हाल
अब तू जाग
तेरा तो बिस्तर
है मैदान
ओढना धरती तेरी
शान
तेरे सिरहाने है
चट्टान
पहन ले पूरा
आसमान
फूंक दे खुद को
ज्वाला ज्वाला
बिन खुद जले ना
होय उजाला
-प्रसून जोशी
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